इस आध्यात्मिक मुलाकात का सबसे मार्मिक क्षण तब आता है जब बहन जी अपने कांपते हुए हाथों से पूज्य भाई जी महाराज की चरणरज प्रेमानंद जी को देती हैं और प्रेमानंद जी भी इस चरणरज को अपने मुख में ग्रहण करके माथे पर लगाते हैं. इसके बाद वह कहती हैं कि मेरे पास भेंट देने को कुछ भी नहीं, इस पर महाराज जी कहते हैं कि इससे बड़ा उपहार क्या हो सकता है.
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